रजनीगंधा की खेती
रजनीगंधा को “निशीगंधा” और “स्वोर्ड लिल्ली” के नाम से भी जाना जाता है|
यह एक सदाबाहार जड़ी बूटी वाला पौधा है जिस में फूल की डंठल 75-100 सैं.मी.
लम्बी होती हैजो 10-20 चिमनी के जैसे आकार के सफेद रंग के फूल उत्पन करता
है| कट फ्लावर दिखने में आकर्षित, ज्यादा समय के लिए स्टोर करके और मीठी
सुगंध वाले होते हैं इसलिए इनकाप्रयोग गुलदस्ते बनाने के लिए किया जाता है|
इसके खुले फूलों का प्रयोग मालाऔर वेणी बनाने के लिए किया जाता है| यह बैड
और गमलेमें उगाने के लिए उचित है और तेल निकालने के लिए प्रयोग किया जाता
है|
रजनीगंधा की खेती समस्त हलकी से भारी (जो हलकी अम्लीय या क्षारीय है) में की जा सकती है, खेत की अच्छी तैयारी व जल निकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। रजनीगंधा के लिये भूमि का चुनाव करते समय दो बातों पर विशेष ध्यान दें। पहला, खेत या क्यारी छायादार जगह पर न हो, यानी जहां सूर्य का प्रकाश भरपूर मिलता हो, दूसरा, खेत या क्यारी में जल निकास का उचित प्रबंध हो। सब से पहले खेत, क्यारी व गमले की मिट्टी को मुलायम व बराबर कर लें।
साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है, कंद का आकार दो सेमी. व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें। बल्ब को उसके आकार और भूमि की संरचना के अनुसार चार-आठ सेमी. की गहराई पर और 20-30 सेमी. लाइन से लाइन और और 10-12 सेमी. बल्ब से बल्ब के बीच की दुरी पर रोपण करना चाहिए रोपण करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होना चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1200-1500 किलो ग्राम कंदों की आवश्यकता होगी है।
रजनी गंधा की फसल में फूलों की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे आवश्यक मात्रा में जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना जरुरी है। इसके लिए एक एकड़ भूमि में 25-30 टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद देना चाहिए। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन तीन बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद तथा तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) कंपोस्ट, फ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दे।
बल्ब रोपण के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब बल्ब के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिचाई करें सिंचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
मिट्टी :
रेतली और चिकनी और बढ़िया जल-निकास वाली मिट्टी रजनीगंधा की खेती के लिए उचित है| इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 6.5-7.5 होना चाहिए|
किस्में
सिंगल और डबल
बिजाई का समय
बिजाई के लिए मार्च-अप्रैल महीने का समय उचित है|
फासला
रोपण के लिए 45 सैं.मी. फासले पर 90 सैं.मी. चौड़े नर्सरी बैड तैयार करें|
बीज की गहराई
गांठों को 5-7 सैं.मी. गहराई पर मिट्टी में बोयें|
बिजाई का ढंग
बिजाई प्रजनन विधी द्वारा की जाती है|
प्रजनन
इस फसल का प्रजनन गांठों द्वारा किया जाता है| 1.5-2.0 सैं.मी. व्यास और 30 ग्राम से ज्यादा भार वाली गांठे प्रजनन के लिए प्रयोग की जाती है| एक तुड़ाई के लिए, एक साल पुरानी फसल की 1 या 2 या 3 गांठे या गांठों के एक गुच्छे को एक जगह पर बोयें और एक साल से ज्यादा पुरानी फसल की 1 या 2 गांठे एक जगह पर बोयें| दोहरी तुड़ाई के लिए एक साल पुरानी फसल की एक गांठ ही बोयें|
बल्ब रोपण के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब बल्ब के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिचाई करें सिंचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
गांठों के अंकुरित होने तक कोई सिंचाई ना करें| अंकुरण होने के बाद और 4-6 पत्ते निकलने पर हफ्ते में एक बार सिंचाई करें| मिट्टी और जलवायु के आधार पर, 8-12 सिंचाइयां करनी आवश्यक है|
कमी और इसका इलाज
नाइट्रोजन की कमी : कमी होने के कारण, डंडियां और फूलों की पैदावार कम हो जाती है| पत्तों पर पीले-हरे रंग के हो जाते है|
फासफोरस की कमी : फासफोरस की कमी होने पर, ऊपर वाले पत्ते गहरे हरे रंग के और निचली तरफ के पत्ते जामुनी रंग के हो जाते हैं| इसके लक्ष्ण विकास का रुक जाना और फूलों की गिनती कम होना आदि|
कैल्शियम की कमी : इसकी कमी के कारण डंडियों में दरार पड़ जाती है| कैल्शियम की ज्यादा कमी होने से कली गल जाती है|
मैगनीशियम की कमी : इसके कारण पुराने पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|
आयरन की कमी : इसके कारण नए पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|
बोरोन की कमी : इसके कारण फूलों का विकास रुक जाता है, पत्तों में दरारें पड़ जाती हैं और पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है|
मैंगनीज की कमी : इसकी कमी के कारण पत्तों की निचली सतह की नसों पर पीलापन देखा जा सकता है|
PER ACRE 20000 BULB X 5/- PER BULB = 1.00.000/-
EXTRA 20000/-
EARNING:-
20000 BULB MEANS 20000 PLANTS
PER PLANT 5 TO 10 STICKS OF FLOWER
PER STICK PRICE 2/- TO 7/-
5 STICKS X 5/- AVERAGE PER STICK = 25/- PER PLANT IN A YEAR
25/- X 20000 PLANTS = 5,00,000/-
बड़े शहरो के आस पास के किसान भाई फूलो की खेती के जरिये भी अपना भविष्य चमका सकते है !
वे रजनीगंधा की खेती क्र अच्छा लाभ कमा सकते है ! प्रति एकड़ सालाना अनुमानित १ से २ लाख तक की आय हो जाती है !
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सम्पूर्ण मार्गदर्शन उपलब्ध है !
रजनीगंधा की खेती समस्त हलकी से भारी (जो हलकी अम्लीय या क्षारीय है) में की जा सकती है, खेत की अच्छी तैयारी व जल निकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। रजनीगंधा के लिये भूमि का चुनाव करते समय दो बातों पर विशेष ध्यान दें। पहला, खेत या क्यारी छायादार जगह पर न हो, यानी जहां सूर्य का प्रकाश भरपूर मिलता हो, दूसरा, खेत या क्यारी में जल निकास का उचित प्रबंध हो। सब से पहले खेत, क्यारी व गमले की मिट्टी को मुलायम व बराबर कर लें।
साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है, कंद का आकार दो सेमी. व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें। बल्ब को उसके आकार और भूमि की संरचना के अनुसार चार-आठ सेमी. की गहराई पर और 20-30 सेमी. लाइन से लाइन और और 10-12 सेमी. बल्ब से बल्ब के बीच की दुरी पर रोपण करना चाहिए रोपण करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होना चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1200-1500 किलो ग्राम कंदों की आवश्यकता होगी है।
रजनी गंधा की फसल में फूलों की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे आवश्यक मात्रा में जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना जरुरी है। इसके लिए एक एकड़ भूमि में 25-30 टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद देना चाहिए। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन तीन बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद तथा तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) कंपोस्ट, फ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दे।
बल्ब रोपण के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब बल्ब के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिचाई करें सिंचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
मिट्टी :
रेतली और चिकनी और बढ़िया जल-निकास वाली मिट्टी रजनीगंधा की खेती के लिए उचित है| इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 6.5-7.5 होना चाहिए|
किस्में
सिंगल और डबल
बिजाई का समय
बिजाई के लिए मार्च-अप्रैल महीने का समय उचित है|
फासला
रोपण के लिए 45 सैं.मी. फासले पर 90 सैं.मी. चौड़े नर्सरी बैड तैयार करें|
बीज की गहराई
गांठों को 5-7 सैं.मी. गहराई पर मिट्टी में बोयें|
बिजाई का ढंग
बिजाई प्रजनन विधी द्वारा की जाती है|
प्रजनन
इस फसल का प्रजनन गांठों द्वारा किया जाता है| 1.5-2.0 सैं.मी. व्यास और 30 ग्राम से ज्यादा भार वाली गांठे प्रजनन के लिए प्रयोग की जाती है| एक तुड़ाई के लिए, एक साल पुरानी फसल की 1 या 2 या 3 गांठे या गांठों के एक गुच्छे को एक जगह पर बोयें और एक साल से ज्यादा पुरानी फसल की 1 या 2 गांठे एक जगह पर बोयें| दोहरी तुड़ाई के लिए एक साल पुरानी फसल की एक गांठ ही बोयें|
बल्ब रोपण के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब बल्ब के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिचाई करें सिंचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए।
गांठों के अंकुरित होने तक कोई सिंचाई ना करें| अंकुरण होने के बाद और 4-6 पत्ते निकलने पर हफ्ते में एक बार सिंचाई करें| मिट्टी और जलवायु के आधार पर, 8-12 सिंचाइयां करनी आवश्यक है|
कमी और इसका इलाज
नाइट्रोजन की कमी : कमी होने के कारण, डंडियां और फूलों की पैदावार कम हो जाती है| पत्तों पर पीले-हरे रंग के हो जाते है|
फासफोरस की कमी : फासफोरस की कमी होने पर, ऊपर वाले पत्ते गहरे हरे रंग के और निचली तरफ के पत्ते जामुनी रंग के हो जाते हैं| इसके लक्ष्ण विकास का रुक जाना और फूलों की गिनती कम होना आदि|
कैल्शियम की कमी : इसकी कमी के कारण डंडियों में दरार पड़ जाती है| कैल्शियम की ज्यादा कमी होने से कली गल जाती है|
मैगनीशियम की कमी : इसके कारण पुराने पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|
आयरन की कमी : इसके कारण नए पत्तों पर पीलापन देखा जा सकता है|
बोरोन की कमी : इसके कारण फूलों का विकास रुक जाता है, पत्तों में दरारें पड़ जाती हैं और पत्तों का आकार बेढंगा हो जाता है|
मैंगनीज की कमी : इसकी कमी के कारण पत्तों की निचली सतह की नसों पर पीलापन देखा जा सकता है|
PER ACRE 20000 BULB X 5/- PER BULB = 1.00.000/-
EXTRA 20000/-
EARNING:-
20000 BULB MEANS 20000 PLANTS
PER PLANT 5 TO 10 STICKS OF FLOWER
PER STICK PRICE 2/- TO 7/-
5 STICKS X 5/- AVERAGE PER STICK = 25/- PER PLANT IN A YEAR
25/- X 20000 PLANTS = 5,00,000/-
बड़े शहरो के आस पास के किसान भाई फूलो की खेती के जरिये भी अपना भविष्य चमका सकते है !
वे रजनीगंधा की खेती क्र अच्छा लाभ कमा सकते है ! प्रति एकड़ सालाना अनुमानित १ से २ लाख तक की आय हो जाती है !
बीज से लेकर लगाने तक का पूरा मार्गदर्शन मिलेगा ! ज्यादा उत्पादन होने पर आप स्वयं घर पर ही इसका अर्क निकाल कर भी बेच सकते है ! जो बहुत महंगा बिकता है !
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औषधीय खेती विकास संस्थान
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