ब्रह्ममी
ब्राह्मी का पौधा पूरी तरह से औषधीय है। यह पौधा भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियां मुलायम, गूदेदार और फूल सफेद होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है। ब्राह्मी के फूल छोटे, सफेद, नीले और गुलाबी रंग के होते हैं। -यह पौधा नम स्थानों में पाया जाता है, तथा मुख्यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है।
ब्राह्मी का एक पौधा होता है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियॉं मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। ब्राह्मी हरे और सफेद रंग की होती है। इसका स्वाद फीका होता है और इसकी तासीर शीतल होती है। ब्राह्मी कब्ज को दूर करती है। इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होता है। ब्राह्मी में रक्त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं क्योंकि यह प्रधानतः जलासन्न भूमि में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसका बहुत बड़ा नाम है।
औषधीय गुण - यह पूर्ण रूपेण औषधी पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है।
उपयोग
इसका उपयोग अल्सर, ट्यूमर, मिर्गी, पागलपन, अरक्तता, गठिया वात, दमा आदि के उपचार में किया जाता है।
इसका उपयोग एक मूत्रवर्धक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
इसे सांप काटने पर विष मारक रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
उपयोगी भाग : संपूर्ण शाक
उत्पादन क्षमता : 24-30 क्विंटल/हेक्टयर सूखी पत्तियाँ
उत्पति और वितरण
यह पौधा भारत में गीले, नम, दलदली क्षेत्रों और समतल मैदानों में पाया जाता है। इस वर्ग की 20 प्रजातियाँ पाई जाती है। जिनमें से 3 भारत वर्ष में पाई जाती है।
वितरण : ब्राही जिसे वैज्ञानिक रूप से बकोपा मोनिअरी के नाम से जाना जाता हैं स्क्रोफुलेरिएसी कुल का पौधा है और दुनिया के नम और गर्म भागों में पाया जाता है। यह धीरे – घीरे बढ़ने वाली वार्षिक शाक है जो नम या दलदली क्षेत्रों में बढ़ती है।
स्वरूप
यह एक भूस्तरी गूदेदार जड़ी – बूटी है।
गांठो से शाखायें निकलती है और बढ़ती है।
पत्तियाँ
पत्तियाँ गूदेदार, अवृन्त, तने पर एक - दूसरे के विपरीत व्यवस्थित और आकार में अण्डाकार होती हैं|
फूल
फूल अण्डाकार होते है।
फूल दिसंबर – मई माह में आतें है।
फल
फल छोटे और आकार में अण्डाकार होते है।
फल दिसम्बर - मई माह में आते है।
बीज
बीज छोटे और भूरे रंग के होते है जिनका आकार 0.2 से 0.3 मिमी तक होता है।
बीज छोटे और संख्या में कई होते है ।
बुवाई का समय
जलवायु
इसे गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।
यह उपोष्ण क्षेत्र की फसल है।
33-440C तक का तापमान 60-65% आर्द्रता के साथ फसल के लिए विकास के लिए आदर्श माना जाता है।
भूमि
पौधे के अनुकूल विकास के लिए अम्लीय मिट्टी अच्छी होती है।
इसे यह रेतीली - दोमट, रेतीली और हल्की काली मिट्टी में भी लगाया जा सकता है।
मिट्टी का pH मान सामान्य होना चाहिए।
मौसम के महीना
इसकी बुवाई जून – जुलाई माह में की जाती है।
बुवाई-विधि
भूमि की तैयारी
भूमि को अच्छी तरह से बार - बार जुताई करके तैयार करना चाहिए।
अंतिम जुताई के समय मिट्टी में 5 टन/हे. की दर से FYM मिलाना चाहिए।
फिर भूमि में सुविधाजनक आकार के भूखण्ड सिंचाई चैनलों के साथ बनाये जाते है।
फसल पद्धति विवरण
पौधो को समान्यत: कलमों द्दारा लगाया जाता है।
संपूर्ण पौधे को 4-6 नोड्स के साथ छोटे टुकड़ो में काट लिया जाता है।
काटने के बाद नोड्स को गोबर के घोल में डुबोया जाता है।
इस प्रकार की कलमों को सीधे खेतो में लगाया जा सकता है।
रोपाई
कलमों को गीली मिट्टी में रोपित करना चाहिए।
अधितकतम उपज प्राप्त करने के लिए कलमों के बीच 10X10 से.मी. की दूरी रखना चाहिए।
रोपण जुलाई – अगस्त माह में करना चाहिए।
उत्पादन प्रौद्योगिकी खेती
खाद
भूमि की तैयारी के दौरान 5 टन/हे. की दर से अच्छी तरह से विघटित FYM मिट्रटी के साथ मिलाना चाहिए।
ब्राही की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 100 कि.ग्रा. N, 60 100 कि.ग्रा. P2O5 और 60 100 कि.ग्रा. K2O प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
चूने का अनुप्रयोग फसल के विकास के लिए फायदेमंद होता है।
सिंचाई प्रबंधन
बरसात के तुरंत बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सर्दियों के मौसम में 20 दिनों के अंतराल पर और गर्मी के मौसम में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन
हाथों से निंदाई फसल के लिए अच्छी होती है।
निंदाई रोपण के 15-20 दिनों के बाद की करना चाहिए।
अगली निंदाई 2 महीने के बाद करना चाहिए।
कटाई
तुडाई, फसल कटाई का समय
फसल 5-6 महीने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
बाह्री एकत्रित करने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर – नबंवर माह के बीच होता है। जिस समय अधिकतम बायोमास का उत्पादन होता है।
तने को आधार से 4-5 से.मी. ऊपर तक काटा जाता है। शेष बचे हुये तने को पनर्जनन के लिए छोड़ दिया जाता है।
फसल काटने के बाद और मूल्य परिवर्धन
सुखाना
आम तौर पर सुखाने के लिए पारंपरिक विधि का उपयोग किया जाता है।
इसे कमरे के तापमान पर छाया में जमीन पर फैला कर सुखाया जाता है।
8-10 दिनों के बाद फसल पूरी तरह से सूख जाती है।
पैकिंग
सुखाई गई सामग्री को वायुरोधी पालीथीन के थैलो में पैक किया जाता है।
भडांरण
पैक सामग्री को ठंडे और शुष्क कमरे में रखना चाहिए।
भंडारण के दौरान सामग्री की रक्षा कीट और पतंगों से करना चाहिए।
परिवहन
सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।
दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।
परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती
इस विषय पर किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप कॉल कर सकते है 8235862311
औषधीय खेती विकास संस्थान
www.akvsherbal.com
सर्वे भवन्तु सुखिनः
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