इसबगोल
इसबगोल
इसबगोल
श्रेणी (Category) : औषधीय
समूह (Group) : कृषि योग्य
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : प्लान्टगो ओवेट फोर्स्क
सामान्य नाम : इसबगोल
समूह (Group) : कृषि योग्य
वनस्पति का प्रकार : शाकीय
वैज्ञानिक नाम : प्लान्टगो ओवेट फोर्स्क
सामान्य नाम : इसबगोल
उपयोग : मूत्र जनित रोगों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। बीज और भूसी का उपयोग आँत की सूजन और जलन के उपचार मे किया जाता है। पुरानी कब्ज, पेचिश, बवासीर, गुर्दा और दमा रोगों के इलाज मे भी इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग रंगाई, रंग–बिरंगी छपाई और आइसक्रीम उद्योग में एक स्थिरक की तरह किया जाता है। मिठाई और प्रसाधन उपयोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। बिना भूसी के बीजों का उपयोग पशुओ के आहार के लिए किया जाता है।
उपयोगी भाग : बीज भूसी
उत्पति और वितरण :
यह मूल रूप से फारस और पश्चिम एशिया का पौधा है जो सतलुज, सिंध और पश्चिम पाकिस्तान तक फैला हुआ है। यह मेक्सिको और भूमध्य क्षेत्र में भी यह पाया जाता है। भारत के गुजरात में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसके अलावा दक्षिण राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती की जा रही है। मध्यप्रदेश के इन्दौर संभाग में इसकी खेती की जाती है।
वितरण : यह एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है जो समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाई जाती है। इसे व्यापार में भारतीय प्लांटागो के नाम से भी जाना जाता है। इससे प्राप्त बीज और भूसी महत्वपूर्ण होती है जिनका उपयोग सर्दियों से औषधीय के निर्माण में हो रहा है। ईसबगोल पारसी भाषा का शब्द है जो दो शब्दो के मेल ‘अस्प’ और घोल से बना है जिसका मतलब घोड़ो का कान होता है। इसलिए इसे अश्वकर्ण भी कहा जाता है। इसके बीज घोड़े के कान के समान ऊभरे हुए होते हैं। बीज की भूसी घोड़े के कान के समान उभरे हुए होते है। बींज की भूसी का व्यापारिक महत्व है।
उपयोगी भाग : बीज भूसी
उत्पति और वितरण :
यह मूल रूप से फारस और पश्चिम एशिया का पौधा है जो सतलुज, सिंध और पश्चिम पाकिस्तान तक फैला हुआ है। यह मेक्सिको और भूमध्य क्षेत्र में भी यह पाया जाता है। भारत के गुजरात में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। इसके अलावा दक्षिण राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती की जा रही है। मध्यप्रदेश के इन्दौर संभाग में इसकी खेती की जाती है।
वितरण : यह एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है जो समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाई जाती है। इसे व्यापार में भारतीय प्लांटागो के नाम से भी जाना जाता है। इससे प्राप्त बीज और भूसी महत्वपूर्ण होती है जिनका उपयोग सर्दियों से औषधीय के निर्माण में हो रहा है। ईसबगोल पारसी भाषा का शब्द है जो दो शब्दो के मेल ‘अस्प’ और घोल से बना है जिसका मतलब घोड़ो का कान होता है। इसलिए इसे अश्वकर्ण भी कहा जाता है। इसके बीज घोड़े के कान के समान ऊभरे हुए होते हैं। बीज की भूसी घोड़े के कान के समान उभरे हुए होते है। बींज की भूसी का व्यापारिक महत्व है।
कुल : प्लान्टागिनासाए
आर्डर : प्लान्टाए
प्रजातियां : प्लांटागो ओवेट फोर्स्क , पी. साइलियम लिब, पी. इन्सुलेरिस ईस्टव.
आर्डर : प्लान्टाए
प्रजातियां : प्लांटागो ओवेट फोर्स्क , पी. साइलियम लिब, पी. इन्सुलेरिस ईस्टव.
वितरण :
यह एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है जो समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाई जाती है। इसे व्यापार में भारतीय प्लांटागो के नाम से भी जाना जाता है। इससे प्राप्त बीज और भूसी महत्वपूर्ण होती है जिनका उपयोग सर्दियों से औषधीय के निर्माण में हो रहा है। ईसबगोल पारसी भाषा का शब्द है जो दो शब्दो के मेल ‘अस्प’ और घोल से बना है जिसका मतलब घोड़ो का कान होता है। इसलिए इसे अश्वकर्ण भी कहा जाता है। इसके बीज घोड़े के कान के समान ऊभरे हुए होते हैं। बीज की भूसी घोड़े के कान के समान उभरे हुए होते है। बींज की भूसी का व्यापारिक महत्व है।
यह एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है जो समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाई जाती है। इसे व्यापार में भारतीय प्लांटागो के नाम से भी जाना जाता है। इससे प्राप्त बीज और भूसी महत्वपूर्ण होती है जिनका उपयोग सर्दियों से औषधीय के निर्माण में हो रहा है। ईसबगोल पारसी भाषा का शब्द है जो दो शब्दो के मेल ‘अस्प’ और घोल से बना है जिसका मतलब घोड़ो का कान होता है। इसलिए इसे अश्वकर्ण भी कहा जाता है। इसके बीज घोड़े के कान के समान ऊभरे हुए होते हैं। बीज की भूसी घोड़े के कान के समान उभरे हुए होते है। बींज की भूसी का व्यापारिक महत्व है।
स्वरूप : यह एक शाकीय पौधा है।
पत्तिंया : इसकी पत्तियाँ रेखीय, 7.5 से 20 से.मी. लंबी और 0.5 से 0.6 से.मी. चौड़ी होती है।
फूल : फूल सफेद, छोटे और चार भागों में विभाजित होते है।
फल : फूल अण्डाकार और 8 मिमी लंबे होते है।
बीज : बीज चिकने, गुलाबी भूरे या गुलाबी सफेद रंग के और 2-3 मिमी लंबे होते है। बीज पारदर्शी झिल्ली से ढ़के होते है जिसे भूसी कहा जाता है। ढ़के हुए बीज कठोर और गहरे लाल रंग के होते है।
परिपक्व ऊँचाई : यह पौधा 30-45 से.मी. तक की ऊँचाई तक बढ़ता है।
पत्तिंया : इसकी पत्तियाँ रेखीय, 7.5 से 20 से.मी. लंबी और 0.5 से 0.6 से.मी. चौड़ी होती है।
फूल : फूल सफेद, छोटे और चार भागों में विभाजित होते है।
फल : फूल अण्डाकार और 8 मिमी लंबे होते है।
बीज : बीज चिकने, गुलाबी भूरे या गुलाबी सफेद रंग के और 2-3 मिमी लंबे होते है। बीज पारदर्शी झिल्ली से ढ़के होते है जिसे भूसी कहा जाता है। ढ़के हुए बीज कठोर और गहरे लाल रंग के होते है।
परिपक्व ऊँचाई : यह पौधा 30-45 से.मी. तक की ऊँचाई तक बढ़ता है।
जलवायु : इसे ठंडे और शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। अधिकतम बीज अंकुरण के लिए 200C से 300C के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। रात के कम तापमान में यह पौधा तेजी से पनपता है।
भूमि : दुमट मिट्टी इसकी पैदावार के लिए आदर्श मानी जाती है। अच्छी जल निकासी के साथ इसे हल्की और भारी मिट्टी में भी पैदा किया जा सकता है। मिट्टी का pH मान 4.7 से 7.7 के बीच होना चाहिए।
मौसम के महीना : इसकी बुवाई जुलाई से नवम्बर माह के बीच की जाती है।
भूमि : दुमट मिट्टी इसकी पैदावार के लिए आदर्श मानी जाती है। अच्छी जल निकासी के साथ इसे हल्की और भारी मिट्टी में भी पैदा किया जा सकता है। मिट्टी का pH मान 4.7 से 7.7 के बीच होना चाहिए।
मौसम के महीना : इसकी बुवाई जुलाई से नवम्बर माह के बीच की जाती है।
भूमि की तैयारी : खेत में खरपतवार और बडे पत्थर नही होना चाहिए। जुताई करके खेत अच्छी तरह तैयार किया जाना चाहिए। जुताई की संख्या मिट्टी की स्थिति और पिछली फसल पर निर्भर करती है। अंतिम जुताई के समय मिट्टी में 10-15 टन FYM मिलाया जाता है। मिट्टी की संरचना, खेत का ढ़ाल और सिंचाई की निर्भरता को देखते हुए भूखंड को उपयुक्त भागो में विभाजित किया जाता है। हल्की मिट्टी में 8 X 3 मी. के सुविधाजनक आकार के भूखंड बनाये जाते है।
फसल पद्धति विवरण : ताजे और सुस्पष्ट बीजों को बुवाई के लिए चुना जाता है। बीजों को प्रसारण विधि द्दारा और कतार में बुवाई करके बोया जाता है। ईसबगोल के बीज छोटे और हल्के होते है इसलिए बीजों को साफ रेत या छनी FYM से ढ़क दिया जाता है। बीजों को 1 से 2 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण प्रभावित होता है। लगभग 5 से 7.5 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीजों की आवश्यकता होती है।
फसल पद्धति विवरण : ताजे और सुस्पष्ट बीजों को बुवाई के लिए चुना जाता है। बीजों को प्रसारण विधि द्दारा और कतार में बुवाई करके बोया जाता है। ईसबगोल के बीज छोटे और हल्के होते है इसलिए बीजों को साफ रेत या छनी FYM से ढ़क दिया जाता है। बीजों को 1 से 2 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण प्रभावित होता है। लगभग 5 से 7.5 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीजों की आवश्यकता होती है।
खाद : खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह सड़ी हुई FYM 20 टन/हेक्टेयर की दर से मिलाई जाती है। फसल को अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। 25 कि.ग्रा. नत्रजन और 25 कि.ग्रा. फस्फोरस को आधीय खुराक के रूप में दी जाने की सलाह दी जाती है। फसल के विकास के लिए पहली सिंचाई के बाद 25 कि.गा./हे. की दर से नत्रजन की मात्रा दी जाती है।
सिंचाई प्रबंधन : पहली बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई की आवश्य़कता होती है। सिंचाई पानी की एक हल्की फुहार के साथ करना चाहिए अन्यथा पानी के तेज प्रवाह से बीज भूखंड से अलग हो जायेंगे और वितरण में एक रूपता नही रहेगी। यह फसल पानी की सघनता को सहन नहीं करती है। बीज 6-7 दिनो में अंकुरित हो जाते है। यदि अंकुरण कम होता है तो दूसरी बार सिंचाई करना चाहिए। आखिरी बार सिंचाई उस समय की जानी चाहिए जब अधिकतम बालिया दूधिया रंग में परिवर्तित हो जाती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन : 20 – 25 दिनों के बाद पहली निंदाई की जानी चाहिए। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के दो महीने के भीतर 2-3 बार निंदाई की आवश्यकता होती है।
सिंचाई प्रबंधन : पहली बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई की आवश्य़कता होती है। सिंचाई पानी की एक हल्की फुहार के साथ करना चाहिए अन्यथा पानी के तेज प्रवाह से बीज भूखंड से अलग हो जायेंगे और वितरण में एक रूपता नही रहेगी। यह फसल पानी की सघनता को सहन नहीं करती है। बीज 6-7 दिनो में अंकुरित हो जाते है। यदि अंकुरण कम होता है तो दूसरी बार सिंचाई करना चाहिए। आखिरी बार सिंचाई उस समय की जानी चाहिए जब अधिकतम बालिया दूधिया रंग में परिवर्तित हो जाती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन : 20 – 25 दिनों के बाद पहली निंदाई की जानी चाहिए। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के दो महीने के भीतर 2-3 बार निंदाई की आवश्यकता होती है।
तुडाई, फसल कटाई का समय : जब फसल पीले रंग की हो जाती है, बालियाँ भूरी पड़ जाती है और बालियों को दबाने पर बीज निकल जाते है तो इसका मतलब फसल परिपक्व हो गई है। कटाई के समय वातावरण शुष्क होना चाहिए और पौधे में कोई नमी नहीं होना चाहिए अन्यथा बीज बिखर जायेंगे। इसलिए कटाई सुबह 10-11 बजे के बीच करना चाहिए। मिट्टी की संरचना को देखते हुए पौधो को जमीनी स्तर से या पूरी तरह उखाड़ा जाता है।
सफाई : बीजों को तब तक छाना जाता है जब तक वे साफ ना हो जाये। भूसी को अलग करने के लिए साफ बीजों को 6 – 7 बार पीसा जाता है।
श्रेणीकरण-छटाई (Grading) : बीज और भूसी को उष्कृष्टता के अनुसार सफाई कर वर्गीकृत किया जाता है। उच्चतम गुणवत्ता की भूसी सफेद होती है जो बिना किसी लाल कर्नल के कण के बिना होती है।
पैकिंग (Packing) : वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के ईसबगोल के बीजों और भूसी को पालीथीन या नायलाँन के थैलो में पैक किया जाना चाहिए।
भडांरण (Storage) : बीज और भूसी को अलग - अलग संग्रहित किया जाना चाहिए। बीज साधारण भंडारण के तहत व्यवहार्यता खो देते है। गोदाम भंडारण के लिए अच्छे होते है। शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है। बीजों को सीधे बेचा जा सकता है और भूसी अलग से बेची जा सकता है।
परिवहन : सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं। दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं। परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) : ईसबगोल चूर्ण
श्रेणीकरण-छटाई (Grading) : बीज और भूसी को उष्कृष्टता के अनुसार सफाई कर वर्गीकृत किया जाता है। उच्चतम गुणवत्ता की भूसी सफेद होती है जो बिना किसी लाल कर्नल के कण के बिना होती है।
पैकिंग (Packing) : वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के ईसबगोल के बीजों और भूसी को पालीथीन या नायलाँन के थैलो में पैक किया जाना चाहिए।
भडांरण (Storage) : बीज और भूसी को अलग - अलग संग्रहित किया जाना चाहिए। बीज साधारण भंडारण के तहत व्यवहार्यता खो देते है। गोदाम भंडारण के लिए अच्छे होते है। शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है। बीजों को सीधे बेचा जा सकता है और भूसी अलग से बेची जा सकता है।
परिवहन : सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं। दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं। परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) : ईसबगोल चूर्ण
इस विषय पर किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप कॉल कर सकते है 8235862311
औषधीय खेती विकास संस्थान
www.akvsherbal.com
सर्वे भवन्तु सुखिनः
ReplyDeleteईसबगोल के बारे में जानकारी और फ़ायदे