सतावर [एस्पेरागस रेसमोसुस]

पौधे की जानकारी (Information) 

उपयोग :  इसकी जड़ों का रस गर्मी में शरीर को ठंडा करने में, अतिअम्लता और पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है। गर्भपात को रोकने के लिए इसके चूर्ण को उबले हुए दूध के साथ दिया जाता है। इसका उपयोग स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्तन में दूध बढ़ाने में मदद करता है। गाय और भैंस में दूध उत्पादन को बढ़ाने में भी मदद करता है । घरों की आंतरिक और बाहरी सजावट के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। कामोत्तेजक टानिक, मूत्रवर्धक, अधिश्वेत रक्तता और अपच में इसका उपयोग किया जाता है। 
उपयोगी भाग :  जड़े
उत्पादन क्षमता 
12000-14,000 कि.ग्रा./हे. ताजी जड़े और 1000-1200 कि.ग्रा./हे. सूखी जड़े
उत्पति और वितरण 
यह मूल रूप से समशीतोष्ण एशिया और यूरोप में पाया जाता है। दुनिया के कई अन्य भागों में भी यह पाया जाता है। 
वितरण : सतावर को भी सतावरी के नाम से भी जाना जाता है। यह फैलने वाली लता है, जो प्राकृत रूप से भारत के कई क्षेत्रों में पाई जाती है। इस औषधीय पौधे का उपयोग होम्योपैथी दवाओं में किया जाता है। इसे अँग्रेजी में एस्पेराग्स कहते है। 


वर्गीकरण विज्ञान, वर्गीकृत (Taxonomy)
कुल : लिलीऐसी 

आर्डर : एस्पेरागेलेस 

प्रजातियां :  एस्पेरागस रेसमोसुस वितरण 

सतावर को भी सतावरी के नाम से भी जाना जाता है। यह फैलने वाली लता है, जो प्राकृत रूप से भारत के कई क्षेत्रों में पाई जाती है। इस औषधीय पौधे का उपयोग होम्योपैथी दवाओं में किया जाता है। इसे अँग्रेजी में एस्पेराग्स कहते है। 


आकृति विज्ञान, बाह्रय स्वरूप (Morphology)
स्वरूप : यह एक लंबी बारहमासी और फैलने वाली लता है। इसकी शाखाएँ कोणीय और कम गुच्छेदार होती है।
पत्तिंया : पत्तियाँ पतली सुई की तरह नुकीली, काटेंदार और 7 मिमी से 2 से.मी. लंबाई की होती है।
फूल : फूल छोटे और मनोहारी खुशबू के साथ सफेद रंग के होते है।फूल सितम्बर – नवम्बर माह में आते है।
फल : फल गोलाकार, गूदेदार और 5 मिमी व्यास के होते है।परिपक्व फल लाल रंग के होते है।फल जनवरी – मार्च माह में आते है।
जड़ : जड़े लंबी, एक समान रूप से बेलनाकार, गूदेदार, क्रीम रंग की और अक्ष के आधार पर गुच्छों में होती है।
बीज : बीज छोटे और कड़वे़ स्वाद के साथ 3 मिमी के होते है।
परिपक्व ऊँचाई : इसकी ऊंचाई 4-6 फुट तक होती है। 

  



जलवायु : उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिंबधीय क्षेत्र फसल के लिए उपयुक्त होते है।यह फसल सूखे की स्थिति और कम तापमान को सहन कर सकती है।8 0 से 480C तक का तापमान इसके विकास के लिए उत्तम होता है।
भूमि : इसे रेतीले दोमट मिट्टी पर उगाया जा सकता है।मिट्टी में उत्तम जल निकासी होना चाहिए।
मौसम के महीना : बीजों की बुबाई मई माह में की जाती हैं। 
  
भूमि की तैयारी : 15 से.मी. गहराई तक खुदाई करके मिट्टी को अच्छे तरह तैयार करना चाहिए।खेत को सुविधा जनक आकार के भूखंडो में विभाजित किया जाता है और 60 से.मी. की दूरी पर क्यारियाँ बनाई जाती है।अच्छी तरह से विकसित जड़ों को क्यारियों में लगाया जाता है।
फसल पद्धति विवरण : पौधों को जडों के माध्यम से भी लगाया जा सकता है ।एक परिपक्व पौधे के आधार से कंदीय जड़ों के काटा जाता है और अलग–अलग लगाया जाता है।2 से 3 महीने के बाद पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते है।
वितरण : जून – जुलाई माह में बीजों को बोया जाता है।उच्च और शीघ्र अंकुरण के लिए बीजों को बुवाई के पहले 2 दिन दिनो के लिए गर्म पानी में भिगोया जाता है या गिवेरेलिक अम्ल से उपचारित किया जाता है। बीजो को मई माह में बोया जाता है। मिट्टी में बीजों को 2 से.मी. गहराई में बोते है। 



नर्सरी बिछौना-तैयारी (Bed-Preparation) :  सबसे पहले व्यावसायिक खेती के लिए तैयार करना चाहिए । 1 एकड़ की खेती के लिए 100 वर्ग फुट की नर्सरी तैयार करना चाहिए । क्यारियाँ तैयार करते समय अच्छी तरह विघटित FYM मिलाना चाहिए। 1 हेक्टेयर बुबाई के लिए लगबग 1-1.5 किग्रा बीज पर्याप्त होते है। रोपाई के बाद स्प्रिंकिलर से हल्की सिंचाई करन चाहिए। रोपाई के 10-15 दिनों के बाद बीजों का अकुंरण प्रारंभ हो जाता है।
रोपाई की विधि :  जब पौधे 2-3 महीने पुराने हो जाते है तब उन्हे मुख्य खेत में प्रतिस्थापित किया जा सकता है। 







रोग : ----------------- (रस्ट) 

कारणात्मक जीव (Causal-Organisms) 

पुसिनिया एस्परगी 
नियंत्रण :  इसके नियंत्रण के लिये बोर्डो मिश्रण (1%) का छिड़काव करना चाहिए। 

  


खाद :  रोपाई के अच्छी तरह से विघटित FYM 20 टन/हे. की दर से देना चाहिए। 60:80:100 कि.ग्रा./हे. की दर से N:P:K की मात्रा दो खुराक में देना चाहिए। पहली रोपाई के समय और दूसरी पौधों को अच्छी तरह से स्थापित हो जाने के देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन :  इसे बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करना चाहिए। एक महीने तक 4-6 दिन के अंतराल से सिंचाई करे और बाद में सप्ताहिक अंतराल से सिंचाई की जाती है।
घसपात नियंत्रण प्रबंधन :  पौधे के विकास की प्रारंभिक अवधि के दौरान निंदाई की आवश्यकता होती है। फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए 6-8 बार हाथों से निंदाई करना चाहिए।
सहारा दे्ना (Stacking) :  यह फसल लता के रुप में है इसलिए इसकी अच्छी पैदावार के लिए सहारा देना आवश्यक है। 4-6 फीट लम्बे डंडो से सहारा दिया जाता है। बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण में सहारे के लिए बाड़ो का उपयोग करते है। 
तुडाई, फसल कटाई का समय :  रोपाई के 20-30 महीनों के बाद जड़े खुदाई के लिए परिपक्व हो जाती है। मार्च – मई माह में जब बीज परिपक्व हो जाते है, खुदाई के लिए उपयुक्त समय होता है।  कुल्हाड़ी की मदद से जडों को खोदना चाहिए। खुदाई के पहले हल्की सिचाई करने से जड़ों को आसानी से खोदा जा सकता है। 

छाल उतरना :  खुदाई के बाद जड़ों की छिलाई की जाती है। यह प्रकिया खुदाई के तुरंत बाद करना चाहिए अन्यथा जड़े सूख जायेगी और उन्हे छीलना कठिन हो जाएगा। छीलने की प्रक्रिया को उबालकर भी किया जा सकता है। जडों को तब तक उबाला जाता है जब तक कि वे नरम न हो जाये और उसके बाद छिलाई की जाती है।
सुखाना :  छीलने के बाद जड़ों को छाया में सुखाया जाता है। जडें सूखने के बाद हल्के पीले और हल्के लाल रंग की हो जाती है।
पैकिंग (Packing) :  वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के पालीथीन या नायलाँन थैले में पैक किया जाना चाहिए।
भडांरण (Storage) :  जडों को सूखे स्थानों में भंडारित करना चाहिए। गोदाम भंडारण के लिए आदर्श होते है। शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है।
परिवहन :  सामान्यत: किसान अपने उत्पाद को बैलगाड़ी या टैक्टर से बाजार तक पहुँचता हैं।  दूरी अधिक होने पर उत्पाद को ट्रक या लाँरियो के द्वारा बाजार तक पहुँचाया जाता हैं।  परिवहन के दौरान चढ़ाते एवं उतारते समय पैकिंग अच्छी होने से फसल खराब नहीं होती हैं।
अन्य-मूल्य परिवर्धन (Other-Value-Additions) :  सतावर चूर्ण  सतावर गुलाम सतावर घ्रतम 


सतावर
प्रति एकड़
लागत-5/- प्रति पौधे की  दर से 
प्रति एकड़ कुल पौधे -12000 पौधे
अर्थात 12000×5 =60000/-
समयावधि-18 से 24 माह
कीमत- 100 रुपये से 200 रुपये प्रति किलो
उत्पादन- प्रति एकड़ अनुमानित उत्पादन [ सुखी जड़े }1000 से 3000 किलो,यदि अनुमानित उत्पादन 2000  किलो भी माना  जाए [ प्रोसेसिंग के बाद ]
अनुमानित आय- 2000  किलो उत्पादन पर 100/-किलो की दर से 
2000 ×150 =300000/-(3 लाख)
इस प्रकार प्रति एकड़ 3 लाख का अनुमानित उत्पादन किया जा सकता है लागत और प्रबंधन खर्च को घटाया भी जाये तो 2 से 3लाख की अनुमानित आय प्राप्त की जा सकती है।

नोट:- उपरोक्त विवरण में लागत,आय,खर्च,समय आदि सामान्य रूप से ली जाने वाली फसल के आधार पर है जो मूल रूप से प्रकृति ,पर्यावरण एवं भौगोलिक परिस्थितियो पर निर्भर है।अतः आय को अनुमानित आधार पर दर्शाया गया है। जिसमे परिवर्तन (कम ज्यादा)हो सकता हैं।
                       
इस विषय पर किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए आप कॉल कर सकते है  8235862311
औषधीय खेती विकास संस्थान 
www.akvsherbal.com
सर्वे भवन्तु सुखिनः 

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