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Showing posts from January, 2019

जिमीकंद / सुरन

जिमीकंद के ये फायदे जानते हैं आप. जिमीकंद एक गुणकारी सब्जी है। देखने में मिट्टी के रंग की यह सब्जी जमीन के नीचे उगती है। इसे सूरन के नाम से भी जाना जाता है। जिमीकंद बवासीर से लेकर कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से बचाए रखता है। इसमें फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1 और फोलिक एसिड होता है। साथ ही जिमीकंद में पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम और फॉस्फोरस भी पाया जाता है। आज हम आपको बताते हैं कि जिमीकंद खाने से क्या फायदे होते हैं।  आयुर्वेद के अनुसार जिमीकंद उन लोगों को नहीं खाना चाहिए, जिनको किसी भी प्रकार का चर्म रोग हो। जिमीकंद ड्राई, कसैला, खुजली करने वाला होता है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए। आयुर्वेदाचार्य एके गर्ग के मुताबिक, आयुर्वेद में जिमीकंद जड़ औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है। पेट से जुड़े रोगों के लिए इसका सेवन रामबाण की तरह होता है। यह दिमाग तेज करने में भी मदद करता है। जिमीकंद खाने से मेमोरी पावर बढ़ती है। साथ ही यह अल्जाइमर रोग होने से भी बचाता है। दिमाग को तेज करने के लिए जिमीकंद को अपने आहार में शामिल करें। ...

बड़ी इलायची/लार्ज कार्डेमम की उन्नत खेती

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-:बड़ी इलायची/लार्ज कार्डेमम की उन्नत खेती करने का तरीका :- संरचना :  बड़ी इलायची को लार्ज कार्डेमम के नाम से भी जाना जाता है | इसका वनस्पतिक नाम एमोमम सूबुलेटम है | यह जिन्जीबरेसी प्रजाति का पौधा है | इसका तना 0. ९ मीटर से २. 0 मीटर तक लम्बा होता है | इसके पौधे की पत्तियां 30 से 60 सेंटीमीटर लम्बी और 6 से 9 सेंटीमीटर चौड़ी होती है | इन पत्तियों का रंग हरा होता है और दोनों तरफ से रोम रहित होता है | इसके फूल के वृंत छोटे और गोल आकार में होते है | इसका फल 2 . 5 सेंटीमीटर लम्बा और गोलाकार होता है | इसका रंग लाल भूरा और घना कंटीला होता है | बड़ी इलायची के उपयोग :-  इलायची को मसाले की रानी कहा जाता है | इसका उपयोग भोजन का स्वाद बढाने के लिए किया जाता है | लेकिन इसमें औषधिय गुण भी होते है जिससे मनुष्य अपनी बीमारी को दूर करते है | बड़ी इलायची से बनने वाली दवाईयों का उपयोग पेट दर्द को ठीक करने के लिए , वात , कफ , पित्त , अपच , अजीर्ण , रक्त और मूत्र आदि रोगों को ठीक करने के लिए  किया जाता है |  बड़ी इलायची के उपर एक छिलके जैसा आवरण होता है जिसके अंदर बीज ह...

सागौन

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सागौन सागौन को इमारती लकड़ी का राजा कहा जाता है जो वर्बेनेसी परिवार से संबंध रखता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैक्टोना ग्रांडिस है। इसका पेड़ बहुत लंबा होता है और अच्छी किस्म की लकड़ी पैदा करता है। यही वजह है कि इसकी देश और विदेश के बाजार में अच्छी डिमांड है। सागौन से बनाए गए सामान अच्छी क्वालिटी के होते हैं और ज्यादा दिनों तक टिकते भी हैं। इसलिए सागौन की लकड़ी से बने फर्नीचर की घर और ऑफिस दोनों जगहों पर भारी मांग हमेशा रहती है। पूरी दुनिया में सागौन लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए आम तौर पर सागौन की अच्छी किस्म की खेती की जाती है जिसमें कम रिस्क पर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। लगभग 14 सालों में अच्छी सिंचाई, उपजाऊ मिट्टी के साथ वैज्ञानिक प्रबंधन के जरिेए एक पेड़ से 10 से 15 क्यूबिक फीट लकड़ी हासिल की जा सकती है। इस दौरान पेड़ के मुख्य तने की लंबाई 25-30 फीट, मोटाई35-45 ईंच तक हो जाती है। आमतौर पर एक एकड़ में 400 अच्छी क्वालिटी के आनुवांशिक पेड़ तैयार किये जा सकते हैं। इसके लिए सागौन के पौधों के बीच 9/12 फीट का अंतराल रखना होता है। भारत में सा...

चंदन

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चंदन चंदन की खुशबू हर किसी का मन मोह लेती है। आंतरराष्ट्रीय बाजार मे बेहद बढती मांग और सोने जैसे बहुमुल्य समझे जाने वाले चंदन की ऊंची कीमत होने के कारण भविष्य मे चंदन की खेती करना बहुतलाभप्रद व्यवसाय साबित हो सकता है। और देशो के तुलनामे भारत मे पाये जानेवाले चंदन के पेड मे खुशबु और तेल का प्रमाण (1% से 6%) सबसे ज्यादा है। ईसीवजह से भारतीय चंदन को आंतरराष्ट्रीय बाजार मे बडी मांग है। भारत मे चंदन रसदार लकड़ी (Hart wood) कि किमत 5000 से 12000 रुपये प्रती कीलो है। बारीक लकडी 800 रुपये कीलो है। पौधे का परिचय (Introduction): सामान्य नाम : चंदन, वैज्ञानिक नाम : Santalum Album linn. श्रेणी : सुगंधीय, उपयोग : चंदन का उपयोग तेल इत्र, धूप औषधी और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में और नक्काशी में इसका उपयोगकिया जाता है। चंदन तेल, चंदन पाउडर, चंदन साबुन, चंदन इत्र. उपयोगी भाग : लकड़ी, बीज, जड़ और तेलउत्पति. यह मूल रुप से भारत में पाये जाने वाला पौधा है। भारत के शुष्क क्षेत्रों विंध्य पर्वतमाला से लेकर दक्षिण क्षेत्र विशेष रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में में पाया जाता ...

तुलसी

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तुलसी तुलसी प्राचीन समय से ही एक पवित्र पोधा जाता है। जिसे हर घर में लगाकर पूजा आदि होती है। तुलसी का आयुर्वेद में बहुत बड़ा स्थान है। तुलसी से बहुत सारे रोगों का उपचार किया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है। वर्तमान में इसे ओषीधिय खेती के रूप में किया जाने लगा है। यह पुरे भारत में पाया जाता है। इसकी कई प्रकार की जातीया होती है जेसे:- ओसेसिम बेसिलिकम,ग्रेटीसिमम,सेकटम,मिनिमम,अमेरिकेनम। तुलसी को लगने का समय :- तुसली लगने का समय अप्रैल से अगस्त होता है। तुलसी लगाने के लिए खेत की तेयारी केसे करे:- खेत में प्रथम जुताई से पहले 200 से 300 किवंटल अच्छी पक्की हुई खाद को खेत में बिखर दे ताकि वह मिटटी में अच्छी तरहा से गुलमिल जाये। अंतिम जुताई करते वक्त आप रासयनिक खाद जिसमे यूरिया 100kg और 500kg सुपर फास्फ़ेट और 125 kg म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति हेक्टर के हिसाब से एक समान पुरे खेत में बिखेर दे। तुलसी के रुपाई के 20 दिनों के बाद खेत में आवश्यक नमी का ध्यान रखकर 50kg यूरिया देवे। दूसरी और तीसरी कटाई के तुरंत बाद भी 50kg यूरिया फसल को देवे यूरिया देत...

इसबगोल

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इसबगोल इसबगोल पौधे का परिचय   (Introduction) श्रेणी (Category)   : औषधीय   समूह (Group)   : कृषि योग्य   वनस्पति का प्रकार   : शाकीय   वैज्ञानिक नाम   : प्लान्टगो ओवेट फोर्स्क   सामान्य नाम   : इसबगोल   पौधे की जानकारी   (Information) उपयोग   :  मूत्र जनित रोगों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। बीज और भूसी का उपयोग आँत की सूजन और जलन के उपचार मे किया जाता है। पुरानी कब्ज, पेचिश, बवासीर, गुर्दा और दमा रोगों के इलाज मे भी इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग रंगाई, रंग–बिरंगी छपाई और आइसक्रीम उद्योग में एक स्थिरक की तरह किया जाता है।  मिठाई और प्रसाधन उपयोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। बिना भूसी के बीजों का उपयोग पशुओ के आहार के लिए किया जाता है।   उपयोगी भाग   :  बीज  भूसी   उत्पति और वितरण   :   यह मूल रूप से फारस और पश्चिम एशिया का पौधा है जो सतलुज, सिंध और पश्चिम पाकिस्तान तक फैला हुआ है। यह मेक्सिको और भूमध्य क्षेत्र में भी यह पाया ...