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Showing posts from November, 2018

सतावर [एस्पेरागस रेसमोसुस]

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पौधे की जानकारी  (Information)   उपयोग  :  इसकी जड़ों का रस गर्मी में शरीर को ठंडा करने में, अतिअम्लता और पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है। गर्भपात को रोकने के लिए इसके चूर्ण को उबले हुए दूध के साथ दिया जाता है। इसका उपयोग स्तनपान कराने वाली महिलाओं के स्तन में दूध बढ़ाने में मदद करता है। गाय और भैंस में दूध उत्पादन को बढ़ाने में भी मदद करता है । घरों की आंतरिक और बाहरी सजावट के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। कामोत्तेजक टानिक, मूत्रवर्धक, अधिश्वेत रक्तता और अपच में इसका उपयोग किया जाता है।  उपयोगी भाग  :  जड़े उत्पादन क्षमता  :  12000-14,000 कि.ग्रा./हे. ताजी जड़े और 1000-1200 कि.ग्रा./हे. सूखी जड़े उत्पति और वितरण  :  यह मूल रूप से समशीतोष्ण एशिया और यूरोप में पाया जाता है। दुनिया के कई अन्य भागों में भी यह पाया जाता है।  वितरण  : सतावर को भी सतावरी के नाम से भी जाना जाता है। यह फैलने वाली लता है, जो प्राकृत रूप से भारत के कई क्षेत्रों में पाई जाती है। इस औषधीय पौधे का ...

काली मिर्च की खेती

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काली मिर्च की लता एक सदाबहार लता है | इसकी बेल बारहमासी है | इसकी खेती भारत के आलावा दुसरे देशों में भी की जाती है | काली मिर्च को सबसे पहले भारत के दक्षिण भाग में उगाया गया था | इसलिए इस स्थान को इसकी  जन्मस्थली कहा जाता है | इस स्थान पर इसकी खेती हर घर में की जाती है |  भारत के आलावा यह इंडोनेशिया , बोर्नियो , मलय , लंका और स्याम आदि देशों में उगाया जाता है |  काली मिर्च का पौधा मालाबार के जंगलो में अधिक संख्या में पाया जाता है | इसकी खेती कोचीन , असम के सिलहट आदि पहाड़ी में में भी सफलतापूर्वक की जाती है | काली मिर्च का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है | लेकिन इसमें आयुर्वेदिक गुण पाए जाते है जिससे आप कई बीमारी का इलाज कर सकते है | काली मिर्च बाजार में अधिक मूल्य पर बेचीं जाती है | इसलिए इसकी खेती करने से हमे अधिक मुनाफा मिलता है |   काली मिर्च के पौधे की पत्तियां आयताकार होती है |  इसकी पत्तियों की लम्बाई 12 से 18 सेंटीमीटर की होती है और 5 से 10 सेंटीमीटर की चौड़ाई होती है | इसकी जड़ उथली हुई  होती है | इसके पौधे की जड़ २ मीटर की गहराई में होती है | इ...

सर्पगन्‍धा की खेती [Rauvolfia serpentina]

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सर्पगन्‍धा की खेती 100% उत्पादन खरीदी अनुबंध के साथ खेती करने हेतु पूछताछ आमंत्रित है। सर्पगंधा (राउल्फिया सर्वेन्टीना) की जड़ों का भारतीय चिकित्सा पद्धति में बहुतायत से प्रयोग होता आरहा है, परन्तु वर्तमान औषधीय पद्धति में भी काफी मात्रा में इसका प्रयोग हो रहा है। आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा पद्धति में जड़ों का प्रयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों, जैसे मस्तिष्क सम्बन्धी रोगों, मिरगी कंपन इत्यादि, आंत की गड़बड़ी तथा प्रसव आदि विभिन्न बीमारियों के उपचार में बहुतायत से उपयोग होता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में सर्पगंधा की जड़ों का प्रयोग उच्चरक्त चाप तथा अनिद्रा की औषधियाँ बनाने में प्रयोग होता है। भूमि तथा जलवायु इसकी खेती विभिन्न मृदा किस्मों जैसे कि बलुवर, बलुवर दोमट तथा भारी जमीनों में हो रही है। इसे बहुत हल्की बलुवर जमीन जिसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो नहीं उगाना चाहिये। यह पौधा अम्लीय तथा क्षारीय दोनों प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। जिस भूमि का पी. एच. 8.5 से ज्यादा हो वह इसकी खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है। सर्पगंधा विभिन्न प्रकार की ज...

स्टीविया की खेती

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जलवायु स्टीविया की खेती  भारतवर्ष में पूरे साल भर में कभी भी करायी जा सकती हैइसके लिये अर्धआद्र एवं अर्ध उष्ण किस्म की जलवायु काफी उपयुक्त पायीजाती है ऐसे क्षेत्र जहाँ पर न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे चला जाता हैवहाँ पर इसकी खेती नही करायी जा सकती 11 सेन्टीग्रेड तक के तापमान में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है भूमि स्टीविया की सफल खेती के लिये उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट भूमि जिसका पी०एच० मान 6 से 7 के मध्य हो, उपयुक्त पायी गयी है जल भराव वाली याक्षारीय जमीन में स्टीविया की खेती नही की जा सकती है रोपाई स्टीविया वर्ष भर में कभी लगाई जा सकती है लेकिन उचित समय फरवरी-मार्च का महीना है तापमान एवं लम्बे दिनों का फसल के उत्पादन पर अधिक प्रभाव पङता होता है स्टीवियाके पौधों का रोपाई मेङो पर किया जाता है इसके लिये 15 सेमी० ऊचाई के 2 फीटचौङे मेंड बना लिये जाते है तथा उन पर कतार से कतार की दूरी 40 सेमी० एवं पौधों में पौधें की दूरी 20-25 सेमी० रखते है दो बेङो के बीच 1.5 फीट की जगह नाली या रास्ते के रूप में छोङ देते है खाद एवं उर्वरक क्योकि स्टीविया की पत्तियों का मनुष्य द्...

सफेद मूसली की खेती

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सफेद मूसली की खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में (ज्यादा ठंडे क्षेत्रों को छोडकर) सफलता पूर्वक की जा सकती है। सफेद मूसली  को सफेदी या धोली मूसली के नाम से जाना जाता है जो लिलिएसी कुल का पौधा है। यह एक ऐसी “दिव्य औषधि“ है जिसमें किसी भी कारण से मानव मात्र में आई कमजोरी को दूर करने की क्षमता होती है। सफेद मूसली फसल लाभदायक खेती है सफेद मुसली एक महत्वपूर्ण रसायन तथा एक प्रभाव वाजीकारक औषधीय पौधा है। इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, बवासीर, चर्मरोगों, पीलिया, पेशाब संबंधी रोगों, ल्यूकोरिया आदि के उपचार हेतु भी किया जाता है। हालांकि जिस प्रमुख उपयोग हेतु इसे सर्वाधिक प्रचारित किया जाता है। वह है-नपंुसकता दूर करने तथा यौनशक्ति एवं बलवर्धन। मधुमेह के उपचार में भी यह काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है। सफेद मूसली उगाने के लिए  जलवायु  - सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्द्र प्रदेशांे का पौधा है। उंत्तरांचल, हिमालय प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के ऊपर क्षेत्रों में यह सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। सफेद मूसली के खेत की तैयारी  - सफेद मूसली 8-9 महीनें की फसल है जिसे मानसून में लगाकर फरवरी-...