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पिप्पली की खेती

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  तमिल भाषा में पिप्पली को आदि मारून्दु अर्थात प्रथम दवाई या मौलिक दवाई कहा गया है जो स्वतः ही पिप्पली की औषधीय महत्ता के साथ-साथ पिप्पली एक महत्वपूर्ण मसाला भी है तथा औद्योगिक उत्पादों के निर्माण में भी इसे प्रयुक्त किया जाता है, उदाहरणार्थ राइस बीयर के किन्वण (फर्मेन्टेशन) हेतु इसका बखुबी उपयोग किया जाता है। पिप्पली के फलों के साथ-साथ इसका मूल जिसे पिप्पलामूल कहा जाता है, भी अनेकों औषधियों के निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है। परम्परागत औषधीय उपयोगों में पिप्पली का उपयोग सरदर्द, खांसी, गले से संबंधित बीमारियों, अपच एवं बदहजमी, पेट में गैस की समस्या तथा बवासीर आदि जैसे विकारों के उपचार हेतु प्रयुक्त किया जाता है। पिप्पली के फलों तथा मूल के साथ-साथ इसके पत्तों का उपयोग पान की तरह किया जाता है। पिप्पली मूलतः मलेशिया तथा इंडोनेशिया का पौधा है। इनके साथ-साथ यह नेपाल, श्रीलंका, सिंगापुर, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, फिलीपीन्स तथा वर्मा में भी पाया जाता है। भारतवर्ष में यह मुख्यतया उष्ण प्रदेशों तथा ज्यादा वर्षा वाले जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगता पाया जाता है। हमारे देश में य...
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  नीलकूपी (Cornflower) क्या है? नीलकूपी एक ऐसी औषधि है जिसमें नीले रंग के फूल आते हैं। इसे कॉर्नफ्लावर भी कहते हैं। इसके सूखे फूलों से दवा बनती है। यह औषध एसिडिक बाग में,अनाज के खेतों में और पर्वतों पर उगता है। इसका साइंटिफक नाम Centaurea Cyanus है। इसके पैदा होने का खास समय जून से अगस्त के बीच का है। यह एक जंगली फूल है जिसका पौधा एक मीटर तक लंबा हो सकता है। यह यूके के साथ-साथ मध्य और दक्षिणी इंग्लैंड में भी यह काफी आम है। इसकी खेती के लिए हल्की रेतली मिट्टटी सबसे उपयुक्त होती है। इसे ब्लूबोटल, कॉर्न-ब्लिंक्स, लैडर लव, लॉगर-हेड्स और ब्लावर्स के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल  प्लेग , घाव, बुखार और सूजन के उपचार के लिए किया जाता है। हालांकि, इसका अधिक मात्रा में सेवन करना जीवन के लिए जोखिम भरा भी साबित हो सकता है। औषधि के तौर पर इसके सूखे फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। इस औषधीय फूल का इस्तेमाल चाय के तौर पर भी किया जा सकता है। इसका चाय पीने से लिवर और पित्ताशय संबंधित बिमारियों,  मासिक धर्म  संबंधी विकार और  योनि यीस्ट संक्रमण  का उपचार भी किया जा सक...